उज्जैन :- मध्य प्रदेश के दक्षिण पश्चिम में शिप्रा नदी के तट पर स्थित उज्जैन तीर्थ का विशेष महत्व है। भगवानों की इस नगरी को देश के शरीर का नाभि देश कहा गया है। इसको अवंतिका, पद्मावती, अमरावती, कुशस्थली आदि अनेक नामों से पुराणों में जाना जाता है। यही वह नगरी है जहां ज्योतिर्लिंग एवं शक्तिपीठ स्थित है, जहां श्री कृष्णा ने सांदीपनि ऋषि से शिक्षा प्राप्त की थी। यहीं पर सम्राट विक्रमादित्य ने विक्रम संवत प्रारंभ किया।
काल भैरव मंदिर
अष्ट भैरव में प्रमुख श्री काल भैरव का यह मंदिर प्राचीन और चमत्कारिक है। इसकी प्रसिद्धि का प्रमुख कारण यह है कि मुंह में किसी प्रकार का छेद नहीं है फिर भी भैरव की यह प्रतिमा मदिरापान करती है । पुजारी द्वारा मद्य का पात्र कालभैरव के मुख से लगाते ही देखते देखते वह खाली हो जाता है ।

स्कन्ध पुराण के अवनी खंड में इन्हीं कालभैराव का वर्णन है। इनके नाम से यह क्षेत्र भैरवगढ़ कहलाता है। मंदिर प्रांगण में संकरी तथा गहरी गुफा में पाताल भैरवी का मंदिर है। काल भैरव के मंदिर के सामने जो मार्ग है , इससे आगे बढ़ने पर प्राचीन विक्रांत भैरव मंदिर है। यह दोनों स्थान तांत्रिक उपासकों के लिए महत्व है।
शिव पुराण तथा ग्रंथो के अनुसार शिव ने अनेक अवतार धारण किये , उनमें से एक भैरव तैतरीय उपनिषद के अनुसार रुद्र ही भैरव है । अतः शिव की नगरी में उन्हीं के रुद्रावतार का यह स्थान अत्यंत महत्व का है ।