श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग

भारत के द्वादश ज्योतिर्लिंग में स्वयंभू , दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिग महाकालेश्वर का प्रमुख स्थान है। यह शिप्रा नदी के किनारे स्थित है। महाकालेश्वर मन्दिर की सुंदरता , विशालता ओर महिमा का वर्णन अनेक साहित्य एवम् धार्मिक ग्रंथ में हुआ है। महाकाल उज्जैन के अधिपति आदिदेव माने जाते हैं।
वर्तमान मन्दिर का पुनर्निर्माण रणोजी सिंधिया के शासनकाल में मालवा के दीवान रहे रामचंद्र बाबा शेनवी द्वारा करवाया गया था । वर्तमान में भी जीर्णोद्वार एवं सुविधा विस्तार का कार्य होता जा रहा है।
बारह ज्योतिर्लिंग में केवल महाकालेश्वर शिवलिंग ही दक्षिणमुखी है। मूर्ति की जलाधारी की है। उत्तर में पार्वती ओर पश्चिम में गणेशजी कि मूर्ति है। पूर्व में कार्तिकेय विराजित है । मन्दिर के प्रांगण में पहली मंजिल पर ओम्कारेश्वर तथा दूसरी मंजिल पर नागचन्द्रेश्वर की मूर्ति है। नागचंद्रेश्वर के दर्शन वर्ष में केवल एक बार नाग पंचमी को होता हैं।
महाकाल मंदिर में सभागृह से लगा कोटितीर्थ कुण्ड है। महाकालेश्वर मन्दिर में प्रातः 4 बजे भस्मा आरती होती है। उसमे अभिषेक के पश्चात महाकाल को चिता भस्म लगाया जाता है । शास्त्र में चिता भस्म अशुद्ध माना गया है । चिता भस्म का स्पर्श हो तो स्नान करना पड़ता है। परन्तु महाकाल शिव के स्पर्श से भस्म पवित्र हो जाती है । इस आरती में सम्मिलित होने के लिए पुरुषों को शोला या सफेद धोती पहनना आवश्यक होता है। महिलाओं को साड़ी पहनना आवश्यक है। ये केवल भस्मारती के लिए ही होता है ।इस पूजन का कार्य महंत द्वारा होता है।
श्रावण मास में महाकाल की सवारी प्रति सोमवार को निकलती है । महाकाल की रजत प्रतिमा की सवारी निकली जाती है। सवारी मन्दिर से निकलकर शिप्रा तट को जाती है । महाकालेश्वर की विशेष श्रृंगार पूजा समय – समय पर होती है ।