देश के सबसे ज्वलंत और चर्चित मुद्दों पर बात होती है तो उसमें आरक्षण एक बड़ा विषय रहता है। जब सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की वर्तमान स्थिति पर 8 मार्च को एक बड़ी टिप्पणी की है। और सभी राज्य सरकारों से सवाल किया है क्या आरक्षण पर लिमिट को 50% से ज्यादा बढ़ाया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को नोटिस भेजकर उनका जवाब भी मांगा है।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने यह बात महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण के मामले पर सुनवाई करते हुए कहीं। सुप्रीम कोर्ट इस पूरे मामले की सुनवाई 15 मार्च से डे टू डेट करने जा रहा है। साथ ही तो अब आरक्षण की सीमा 50% तक बनाए रखने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी दोबारा विचार किया जाएगा। एक लाइन में समझे तो सुप्रीम कोर्ट इस बात पर विचार करेगा कि क्या राज्य सरकार अपनी तरफ से इसी वर्ग को पीछडा घोषित करते हुए आरक्षण दे सकते हैं या नहीं? और अगर ऐसा होगा तो क्या आरक्षण के मूल सिद्धांत से छेड़छाड़ नहीं होगी।
आरक्षण पर जरूरी सवाल
भारत में आरक्षण की व्यवस्था क्या है? किन-किन लोगों को आरक्षण दिया जा सकता है कैसे-कैसे आरक्षण दिया जा सकता है।
1992 में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्य था। जो सुप्रीम कोर्ट दोबारा आरक्षण पर विचार करने को कह रहा है? और राज्य सरकारों से दोबारा नोटिस भेजकर जवाब मांग रहा है,
भारत में आरक्षण की मौजूदा स्थिति
भारत में कुल आरक्षण 49.5+10% आरक्षण दिया जाता है।
वर्ग आरक्षण
अनुसूचित जाति 15%
अनुसूचित जनजाति 7.5%
अन्य पिछड़ा वर्ग 27%
आरक्षण का मूल उद्देश्य
सरकारी नौकरियों में हिस्सेदारी
चुनाव में भागीदारी
शिक्षा और जरूरी स्कीम के पहुच
भारत में आरक्षण
आजादी के वक्त से ही फॉर्मल रिजर्वेशन की व्यवस्था। साल 1970 में भी एसी ने 15% आरक्षण पक्का किया।
1979 में मंडल कमीशन का गठन
1990 में प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने लागू की मंडल कमीशन की सिफारिशें मंजूर करते हुए। ओबीसी को 27% आरक्षण देने की व्यवस्था की।
1992 में सुप्रीम कोर्ट का ऑर्डर 50% से ज्यादा नहीं होगा आरक्षण।
1993 में सरकारी नौकरियों में ओबीसी आरक्षण देने की व्यवस्था शुरू हो गई।