नई दिल्ली
केरल हाई कोर्ट ने हाल ही में दिए अपने फैसले में एक स्टिंग ऑपरेशन करने वाले दो टीवी पत्रकारों को बड़ी राहत दी है और उनके खिलाफ शुरू किए गए आपराधिक मुकदमे को रद्द कर दिया। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा है कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए चौथा खंभा यानी मीडिया का होना जरूरी है। हम उस पर ऐसे केस नहीं चला सकते हैं। यह मामला सनसनीखेज सौर घोटाले से जुड़ा हुआ है। जस्टिस पीवी कुन्हिकृष्णन ने मामले में टिप्पणी करते हुए कहा कि सरकारों के कामकाज पर रिपोर्टिंग करने या उसका स्टिंग ऑपरेशन करते समय प्रेस को कभी-कभी कानूनी सीमाओं को धुंधला करना पड़ सकता है। यह उसके काम का हिस्सा है क्योंकि जनता तक सही सूचनाएं पहुंचाना उनका कर्तव्य है और ईमानदारी से इसे पूरा किया जाना चाहिए। इसमें बाधा नहीं उत्पन्न करना चाहिए।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस कुन्हिकृष्णन ने अपने फैसले में लिखा, “स्वस्थ लोकतंत्र के लिए चौथा स्तंभ आवश्यक है। यह सुनिश्चित करता है कि सत्ता का दुरुपयोग न हो और नागरिकों को लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की अच्छी जानकारी हो और उस प्रक्रिया में शामिल हों। चौथा स्तंभ काम कर रहा है या नहीं और उपरोक्त सिद्धांतों का पालन कर रहा है या नहीं, यह एक अलग बात है। लेकिन उपरोक्त लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए उनकी ओर से कुछ ऐसी गतिविधियां हो सकती हैं, जिनकी कानून के अनुसार सामान्यतः अनुमति नहीं है। चौथे स्तंभ द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली ऐसी ही एक विधि है ‘स्टिंग ऑपरेशन’।”
कोर्ट ने कहा कि मीडिया और कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा किए गए ऐसे स्टिंग ऑपरेशन को कानूनी माना जा सकता है या नहीं, यह मामलों के आधार पर तय किया जाना चाहिए लेकिन अगर कोई स्टिंग ऑपरेशन सच्चाई का पता लगाने और उसे जनता तक पहुंचाने के उद्देश्य से किया गया है तो उसे अभियोजन से छूट दी जा सकती है। इसके साथ ही पीठ ने एक टीवी चैनल में काम करने वाले दो रिपोर्टरों को राहत देते हुए उनके खिलाफ आपराधिक मुकदमे की कार्यवाही को रद्द कर दिया।
दोनों पत्रकारों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर आपराधिक मुकदमे से राहत की गुहार लगाई थी। दोनों पत्रकारों ने सौर घोटाले मामले में एक गवाह का कथित तौर पर स्टिंग ऑपरेशन किया था। इसी वजह से उनके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू की गई थी, जिसे रद्द करने की मांग हाई कोर्ट से की थी। दोनों पत्रकारों ने जिस शख्स का स्टिंग ऑपरेशन किया था, वह उस समय जेल में था। इसी वजह से पत्रकारों पर केरल कारागार और सुधार सेवा (प्रबंधन) अधिनियम 2010 की धारा 86 और 87 के उल्लंघन का आरोप लगाया गया था और उन पर केस दर्ज किया गया था।