RBI ने IDBI Bank के बिडर्स के बारे में रिपोर्ट दी, सरकार अपनी 30% हिस्सेदारी बेचना चाहती है

 

नई दिल्ली
 आईडीबीआई बैंक (IDBI Bank) के निजीकरण का रास्ता साफ हो गया है। RBI ने IDBI बैंक के लिए बोली लगाने वालों पर अपनी ‘फिट एंड प्रॉपर’ रिपोर्ट दे दी है। अब सबकी नजरें सरकार और बजट पर टिकी हैं। बाजार को इस बात का इंतजार है कि विनिवेश पर बजट में सरकार की तरफ से क्या संकेत मिलता है। IDBI बैंक कई साल से सरकार की प्राइवेटाइजेशन लिस्ट में है। सरकार बोली लगाने वालों के बारे में RBI के आकलन का इंतजार कर रही थी कि वे मानदंडों को पूरा करते हैं या नहीं, ताकि प्रक्रिया के अगले चरण में आगे बढ़ा जा सके।

RBI ने एक विदेशी बोलीदाता को छोड़कर बाकी सभी पर अपनी रिपोर्ट दी है। विदेशी बिडर ने अपनी जानकारी साझा नहीं की और विदेशी रेगुलेटर ने भी उसके बारे में डेटा उपलब्ध नहीं कराया है। सरकार के पास आईडीबीआई बैंक में 45.5% हिस्सेदारी है। इसमें देश की सबसे बड़ी इंश्योरेंस कंपनी एलआईसी 49% से अधिक हिस्सेदारी के साथ सबसे बड़ी शेयरधारक है। आईडीबीआई पहले फाइनेंशियल इंस्टीट्यूट था जो बाद में बैंक बन गया। योजना के मुताबिक सरकार बैंक में 60.7% हिस्सेदारी बेच सकती है। इसमें सरकार का 30.5% और LIC का 30.2% हिस्सा शामिल है।

कितना होगा फायदा

आईडीबीआई का मार्केट कैप अभी करीब 95,000 करोड़ रुपये है। यानी हिस्सेदारी बेचने से सरकार को करीब 29,000 करोड़ रुपये मिल सकते हैं। हालांकि कई एनालिस्ट्स का कहना है कि ट्रांजैक्शन की शर्तें बहुत आकर्षक नहीं हैं। सरकार ने बीपीसीएल, कॉनकॉर, बीईएमएल, शिपिंग कॉर्पोरेशन, आईडीबीआई बैंक, दो सरकारी बैंकों और एक बीमा कंपनी के विनिवेश की योजना बनाई थी लेकिन पिछले 18 महीनों से इस दिशा में कोई प्रगति नहीं हुई है। माना जा रहा था कि आम चुनावों के बाद चीजें आगे बढ़ेंगी लेकिन चुनावी नतीजों में इसके भविष्य पर सवालिया निशान लगा दिया है।

पेट्रोलियम मंत्री हरदीप पुरी ने हाल ही में कहा कि बीपीसीएल का निजीकरण टाल दिया गया है। इस मुद्दे पर सरकार के रुख का बेसब्री से इंतजार किया जा रहा है। इसकी वजह यह है कि मोदी सरकार इस बार गठबंधन के सहयोगियों पर निर्भर है। माना जा रहा है कि बजट में इसका संकेत मिल सकता है। फाइनेंस मिनिस्टर निर्मला सीतारमण 23 जुलाई को मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला बजट पेश करेंगी। पीएसयू शेयरों में हाल में आई तेजी को देखते हुए सरकार चालू वित्त वर्ष के दौरान 50,000 करोड़ रुपये के अपने विनिवेश लक्ष्य को पूरा करने की उम्मीद कर सकती है।

विनिवेश पर सरकार की चाल

सरकार ने पिछले 10 वर्षों में बार-बार उन क्षेत्रों से बाहर निकलने की बात कही है जो ‘नॉन-स्ट्रैटजिक’ हैं। लेकिन अब तक केवल एयर इंडिया का विनिवेश किया जा सका है। मार्केट एनालिस्ट्स का कहना है कि आईडीबीआई बैंक के निजीकरण में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। उनका कहना है कि यह एक प्राइवेट एंटिटी है। इसमें सरकार की हिस्सेदारी बढ़ने की वजह यह है कि कर्ज के कारण हुए भारी घाटे से उबारने के लिए सरकार को इसमें पूंजी डालनी पड़ रही है।

 

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