उच्चतम न्यायालय ने 1984 की भोपाल गैस त्रासदी पीड़ितों को अतिरिक्त मुआवजा देने के लिए यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन (यूसीसी) की उत्तराधिकारी फर्मों से अतिरिक्त 7,844 करोड़ रुपये की मांग संबंधी केंद्र की उपचारात्मक याचिका मंगलवार को खारिज कर दी।
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति अभय एस ओका, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति जे के माहेश्वरी की पीठ 2010 में केंद्र सरकार द्वारा दायर इस याचिका को खारिज करते हुए कहा कि कानूनी की कसौटी पर यह उचित नहीं है।
भोपाल गैस त्रासदी मामले में समीक्षा याचिका पर निर्णय लेने के 19 साल बाद उपचारात्मक याचिका दायर की गयी थी।
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि समझौते के दशकों बाद इस याचिका पर फिर विचार करने से ‘भानुमती का पिटारा’ खुल जाएगा।
शीर्ष अदालत ने हालांकि अपने फैसले में कहा कि सरकार केंद्र भोपाल गैस त्रासदी मामले के दावेदारों के लिए आरबीआई में रखे 50 करोड़ रुपए का उपयोग कर सकती है।
शीर्ष अदालत ने पीड़ितों को मुआवजा को लेकर केंद्र सरकार की कथित लापरवाही पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि वह अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकती। सरकार ने खुद पीड़ितों के लिए बीमा पॉलिसी नहीं लाने की जिम्मेदारी नहीं निभाई। अदालत ने कहा कि सरकार यूसीसी पर अपनी लापरवाही की जिम्मेदारी थोपने का निर्देश देने के लिए अदालत से नहीं कह सकती।
शीर्ष अदालत ने 12 जनवरी को यूनियन कार्बाइड की उत्तराधिकारी फर्मों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे, केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और पीड़ितों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख और अधिवक्ता करुणा नंदी की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत से गुहार लगाई थी कि वह अमेरिकन कंपनी यूसीसी की उत्तराधिकारी फर्मों को अतिरिक्त 7,844 करोड़ देने का निर्देश दे। केंद्र सरकार ने अपनी याचिका में तर्क दिया था कि 1984 के गैस पीड़ितों को 1989 के समझौते के तहत मिला 715 करोड़ रुपये का मुआवजा अपर्याप्त था। यह राशि वास्तविक आंकलन पर आधारित नहीं था।
गौरतलब है कि दो-तीन दिसंबर-1984 की दरमियानी रात यूनियन कार्बाइड के कारखाने से लगभग 40 टन ‘मेथायिल अयिसोसायिनेट’ गैस का रिसाव होने लगा था। इससे पूरे शहर में अफरा तफरी मच गई थी। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस त्रासदी में 5000 से अधिक लोग मारे गए और पर्यावरण को भारी नुकसान हुआ।