नक्सलियों पर ड्रोन और सेटेलाइट रडार से रखी जाएगी नजर, सुरक्षाबलों ने की तैयारी

जगदलपुर

 बारिश के दौरान बस्तर में विजिबिलिटी कम हो जाती है और पहुंच विहीन क्षेत्र में पहुंचना मुश्किल होता है। इसलिए पुलिस के ऑपरेशन मानसून को ज्यादा आक्रामक और सफल बनाए रखने के लिए पुलिस माओवादियों की गतिविधि को यूएवी से नजर रखने की तैयारी कर रही हैं। जो नक्सल क्षेत्र के 200 किलोमीटर के दायरे में निगरानी रखेगा। साथ ही सेटेलाइट रडार से भी नजर रखने की योजना सुरक्षा बलों ने बना ली है।

बता दें कि पिछले कुछ सालों से एनटीआरओ का बेस बस्तर में बनाए जाने के बाद बड़े ड्रोन से माओवादियों की गतिविधि भी कैद हो रहा है। बताया जा रहा है कि रडार का कनेक्शन सीधे सेंट्रल मॉनिटरिंग कंट्रोल रुम से होगा और नक्सल क्षेत्रों में लगे रडार अपनी तस्वीरों को सेन्ट्रल मॉनिटरिंग रूम को भेजेगा। जिसके बाद इनपुट के आधार पर नक्सल ऑपरेशन को चलाया जाएगा।

इधर नक्सल क्षेत्र में यूएवी 15 हजार फीट की ऊंचाई से नजर बनाये रखेगा और बारिश में जंगल के भीतर माओवादियों के इमेज को कैप्चर भी करेगा। वहीं सुरक्षा बल अब हर तरीके से माओवादियों पर अंकुश लगाने की तैयारी कर रहा है। इससे पहले भी जनवरी महीने से लगातार पुलिस को अत्याधुनिक संसाधनों की मदद से माओवादियों की एग्जैक्ट लोकेशन मिली जिससे ऑपरेशन सफल हुए हैं।

बताया जाता है कि बस्तर में लगातार हो रही बारिश को देखते हुए आसमान से नजर रखी जा रही है। रात के समय नक्सलियों के मूवमेंट और उनके ठिकानों को चिन्हाकिंत करने की क्षमता होने के कारण इसका उपयोग किया जा रहा है। नक्सल आपरेशन से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि सीधे टारगेट पाॅइंट को कवर करने में काफी मदद मिल रही है।

नक्सली गतिविधियों पर अंकुश लगाने में योजना में कारगार साबित हो रहा है। बता दें कि पहले यह ड्रोन को दुर्ग-भिलाई के नंदनी स्थित सेंटर से उड़ान भरता था। इसके बाद में जगदलपुर शिफ्ट किया गया था। इसकी उपयोगिता को देखते हुए जम्मू और कश्मीर में पत्थरबाजी एवं आतंकवादियों से निपटने के लिए कश्मीर ले जाया गया था।

15000 फीट की ऊंचाई से निगहबानी
रिमोट से उड़ान भरने वाला ईंधन चलित अत्याधिक ड्रोन एक बार में 8-10 घंटे तक उड़ान भर सकता है। वहीं करीब 1000-15000 फीट की उचांई से जंगल के अंदर की गतिविधियों को देख सकता है। इससे मिले इमेज और फ्रीक्वेंसी को कैप्चर करने के बाद नक्शे से संबंधित इलाके चिन्हाकिंत किए जा रहे हैं। सटीक जानकारी देने की क्षमता को देखते हुए राज्य के बार्डर और इसके आसपास के इलाकों को कवर किया जा रहा है। बताया जाता है कि उत्तर और दक्षिण बस्तर में नक्सलियों की गतिविधियों को देखते हुए इसका उपयोग किया जा रहा है।
 

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