आष्टा।कर्म भूमि में मांगने से नही मिलता,करने से मिलता है।निमित्त बिना कोई काम नहीं होता है। तीर्थंकर भी निमित्त मिलते ही अपना काम करते हैं। कर्म भूमि पर पहले राजा ही भगवान की पालकी उठाते है। कर्म बंधने के कारण आदिनाथ जी को छ माह तक आहार नहीं मिला। उन्होंने खेत से फसल के दौरान बैलों के मुंह पर मुसका बांध दिया था, इसलिए उन्हें लंबे समय तक आहार नहीं मिला।
उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर विराजित पूज्य गुरुदेव मुनिश्री भूतबलि सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि सागर महाराज ने आदिनाथ जयंती के अवसर पर आशीष वचन देते हुए कहीं। आपने कहा कि आदि प्रभु का जीवन हमारे लिए आदर्श है। महावीर जयंती मनाते हैं, उसी प्रकार आदिनाथ जयंती मनाए।पर्व आपको संदेश देते हैं। प्रदर्शन नहीं दर्शन व भावों को निर्मल बनाना हैं। पतझड़ जैसे मिथ्यात्व को हटाएं।परम पूज्य मुनिश्री मुनि सागर जी महाराज ने अपने आशीष वचन मे बताया कि यह जो हमारा क्षेत्र है यह तत्कालिक भोग भूमि है,जैसा काल का योग होता है ,वैसे ही भाव जीवों के होते है।तीर्थंकर के कल्याणक में कोई पक्षपात नही होता ,वे एक भवअवतारी होते है। आदिनाथ जी के साथ जो घटनाएं जुड़ी है ,बाकी तीर्थंकरों के साथ इतनी घटनाएं नही जुड़ी। इस लिए पंचकल्याणक में आदिनाथ भगवान के जीवन को बताया जाता है। मुनि सागर महाराज ने कहा आज उनका जन्म कल्याणक महा महोत्सव है ।भोग भूमि में पुरुषार्थ है, जब तीसरा काल समाप्त होने को आया ।वृक्ष सूखने लग गए, प्रजा में चिंता हो गई ।अब क्या होगा तब ऋषभदेव जी ने प्रजा को असि ,मसि ,कृषि का उपदेश देकर प्रजा जनो को कृतार्थ किया । यह हमारा क्षेत्र कर्म भूमि क्षेत्र है।आज आदिनाथ भगवान का जन्म और तप कल्याणक महोत्सव है।देश को आजाद कराने में हजारों लोग शामिल थे ,लेकिन महात्मा गांधी का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। प्रत्येक पंचकल्याणक महोत्सव में आदि प्रभु का उल्लेख पहले किया जाता है।गर्भ, जन्म,तप और मोक्ष कल्याणक है। बिना पुरुषार्थ के कुछ नहीं मिलता।हर जगह पुरुषार्थ करना जरूरी है। मांगे मिले न मुक्ति मिले।भोग भूमि में संयम, मोक्ष नहीं। कर्म भूमि से मोक्ष मिलेगा।
जैन शासन के प्रथम तीर्थंकर 1008 भगवान ऋषभदेव के जन्म कल्याणक महा महोत्सव पर नगर में आज प्रातः काल की बेला में नगर के प्रमुख मार्गों से प्रभात फेरी निकाली गई ।श्रावक- श्राविका गण द्वारा भजन -कीर्तन करते हुए जय – जयकारों के साथ नगर के समस्त जिनालयों में जाकर ध्वजारोहण किया गया एवं नगर के प्राचीन दिव्योदय जैन तीर्थ किला पर चतुर्थकालीन जिन प्रतिमा श्री आदिनाथ भगवान का वार्षिकी मस्तकाभिषेक किया गया। जिसमें श्रावकों द्वारा बढ़ -चढ़ कर हिस्सा लिया गया।अभिषेक की समस्त क्रिया धार्मिक विधि-विधान से ब्रह्मचारिणी मंजुला दीदी द्वारा करवाई गई।